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Of the prospective line with story of success.......
हम अपनी समस्याओं को उसी सोच के साथ हल नहीं कर सकते हैं जो हमने उन्हें बनाया था।
"जितने दिन तक जी गई, बस उतनी ही है जिन्दगी,
मिट्टी के गुल्लकों की कोई उम्र नहीं होती।"
एक कंपनी में जॉब के लिए इंटरव्यू होने वाले थे. बहुत सारे आवेदक अपने तमाम योग्यताओं के प्रमाणपत्र लिए इंटरव्यू शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे. वे अपने अपने विषय की अच्छी तैयारी करके आये थे और अपनी सफलता को लेकर पूरे आशान्वित थे. लेकिन आज का इंटरव्यू कुछ अलग प्रकार का होने वाला था. घंटी बजी और चपरासी ने सबसे पहले उम्मीदवार को इंटरव्यू कक्ष में भेजा. साक्षात्कारकर्ता ने युवक को सामनेवाली कुर्सी पर बिठाया और और उसकी फाइल देखने के बाद बोला, “आपकी क्वालिफिकेशन बहुत अच्छी हैं लेकिन आप मेरे एक सवाल का जवाब दीजिये.”
“मान लीजिये आप कहीं जा रहे हैं, आपकी कार टू सीटर है. आगे चलने पर एक बस स्टैंड पर आप देखते हैं कि तीन व्यक्ति बस के इंतजार में खड़े है. उन में से एक वृद्धा जो कि करीब 90 वर्ष की है तथा बीमार है. अगर उसे अस्पताल नहीं पहुँचाया गया तो इलाज न मिल सकने के कारण मर भी सकती है. दूसरा आपका एक बहुत ही पक्का मित्र है जिसने आपकी एक समय बहुत मदद की थी. तीसरी आपकी प्रेमिका है जिसे आप बेहद प्रेम करते है. अब आप उन तीनो में से किसे लिफ्ट देंगे क्यूंकि आपकी कार में केवल एक ही व्यक्ति आ सकता है ?”
युवक ने एक पल सोचा फिर जवाब दिया ”सर मैं प्रेमिका को लिफ्ट दूंगा.“
साक्षात्कारकर्ता ने हैरानी से पूछा, “क्या ये बाकी दोनों के साथ अन्याय नहीं होगा ?”
युवक ने जवाब दिया, “नो सर, वृद्धा तो आज नहीं तो कल मर ही जायेगी. दोस्त को मैं बाद में भी मिल सकता हूँ पर अगर मेरी प्रेमिका एक बार चली गई तो फिर मैं उससे दूबारा कभी नहीं मिल सकूंगा.”
साक्षात्कार लेने वाले ने मुस्कुरा कर कहा – “वेरी गुड में तुम्हारी साफगोई सुन कर प्रभावित हुआ. अब आप जा सकते है.”
“थैंक यू” कहकर युवक कमरे से बाहर निकल गया.
इसके बाद अन्य प्रत्याशियों का नंबर आया. साक्षात्कार लेने वाले ने सभी से यही सवाल पूछा. सभी ने इसके विभिन्न उत्तर दिए. किसी ने वृद्धा को लिफ्ट देने की बात कही तो किसी ने दोस्त को लिफ्ट देने की बात कही. इस तरह इंटरव्यू आगे चलता रहा.
जब एक प्रत्याशी से यही प्रश्न पूछा तो उसने उत्तर दिया “सर मैं अपनी कार की चाभी अपने दोस्त को दूंगा और उससे कहूंगा कि वो मेरी कार में वृद्धा को लेकर उसे अस्पताल छोड़ता हुआ अपने घर चला जाये. मैं उससे अपनी कार बाद में ले लूंगा और स्वयं अपनी प्रेमिका के साथ टैक्सी में बैठ क़र चला जाऊँगा.
यह जवाब सुनकर इंटरव्यू लेने वाले अधिकारी ने उठकर उससे हाथ मिलाया और कहा, “गुड आंसर, यू आर सिलेक्टेड !”
युवक ने ‘थैंक यू सर’ कहा और मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया.
साक्षात्कार समाप्त हो चुका था.
कई बार हम अपने सामने उपस्थित समस्या के एक ही पहलू को देखकर उसका हल खोजने लगते हैं जबकि उसका हल उसके सभी पहलुओं को एक साथ देखने और समझने में छुपा होता है. जीवन में किसी एक को साथ लेकर चलने के बजाय सभी को साथ लेकर चलने को प्राथमिकता देनी चाहिए.
Iss Friendship day Par ek Visesh Yojna k sath kaam kiya Hai....
कौन कहता है कि दोस्ती बराबरी में होती है सच तो ये है दोस्ती में सब बराबर होते है..!!
दो मित्र थे. वे बहुत ही बहादुर थे. उनमें से एक ने सभा के दौरान अपने राजा के अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई. राजा बहुत ही कठोर और निर्दयी था. स्वयं के प्रति बगावत का सुर सुनते ही राजा ने उस नौजवान को फांसी के तख्ते पर लटकाने की आज्ञा दी.
नौजवान ने राजा से विनती कि – “आप जो कर रहे हैं वह ठीक हैं. मैं खुशी से मौत की गोद में चला जाऊंगा, लेकिन आप मुझे कुछ देर कि मोहलत दे दीजिए, जिससे मैं गांव जाकर अपने बच्चों से मिल आऊं.”
राजा ने कहा – “नहीं, मैं तुम्हारी बात पर कैसे विश्वास करू?”
उस नौजवान का मित्र वहां मौजूद था. वह आगे आकर बोला – “मैं अपने इस दोस्त की जमानत देता हूं, अगर यह लौटकर न आए तो आप इसके बदले मुझे फांसी पर चढ़वा देना.”
राजा आश्चर्यचकित रह गया. उसने अपने जीवन में ऐसा कोई आदमी नहीं देखा था, जो दूसरों के लिए अपनी जान देने को तैयार हो जाए.
राजा ने नौजवान कि याचना को स्वीकृति दी. उसे छ: घण्टे की मौहलत दी गई. नौजवान घोड़े पर सवार होकर अपने गांव को रवाना हो गया और उसके दोस्त को कारागाह में बंद कर दिया गया.
नौजवान ने हिसाब लगाकर देखा कि वह लगभग पांच घंटे में लौट आएगा, लेकिन बच्चों से मिलकर वापस आते वक्त उसका घोड़ा ठोकर खाकर गिर गया और घायल हो जाने के कारण फिर उठा ही नहीं. नौजवान के भी बहुत चोटें आई, पर उसने एक पल के लिए भी हिम्मत नहीं हारी.
छ: घण्टे का समय भी बीत गया. किंतु वह नौजवान नहीं लोटा, तो उसका दोस्त बहुत खुश हुआ. आखिर उसके लिए इससे बढ़कर क्या बात होती कि दोस्त-दोस्त के काम आए. वह निरंतर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि उसका मित्र वापिस न लौटे. फाँसी का समय हो चुका था. मित्र को फांसी के तख्ते के पास लाया ही गया था कि नौजवान वहां पहुंच गया.
नौजवान ने अपने दोस्त से कहा – “लो मैं आ गया. अब मुझे विदा दो और तुम घर जाओं.”
दोस्त ने कहा – “यह नहीं हो सकता. तुम्हारी मियाद पूरी हो गई.”
नौजवान ने कहा – “यह तुम क्या कह रहे हो! सजा तो मुझे मिली है.”
दोनों मित्रों की दोस्ती को राजा बड़े गौर से देख रहा था. राजा का मन भी पिघल गया, उसकी आंखें भर आईं. उसने उन दोनों को बुलाकर कहा – “तुम्हारी दोस्ती ने मेरे दिल पर गहरा प्रभाव डाला है. जाओ, मैनें तुम्हें माफ किया”
उस दिन से राजा ने कभी किसी पर अत्याचार नहीं किया......
एक बार किसी जगह पर एक पिता अपनी बेटी के साथ रहता था। दोनों में काफी प्यार था और दोनों काफी मिलजुलकर रहते थे। एक दिन बेटी ने अपने पिता से शिकायत करने लगी कि उसकी ज़िन्दगी बहुत ही उलझी हुयी है। और कहने लगी “मैं बहुत थक गयी हूँ अपनी ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते। जब भी कोई एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है। कब तक लड़ती रहूंगी इन सब से।” वह काफी परेशान लग रह रही थी।
यह सब सुनके पिता ने कहा मेरे साथ आओ, और रसोई में चले गए। बेटी भी अपने पिता के कहे अनुसार रसोई में अपने पिता के सामने खड़ी हो गयी। उसके पिता ने बिना कुछ कहे तीन बर्तनों में पानी भरकर अलग अलग चुल्हों पर उबालने रख दिया। एक बर्तन में आलू, एक में अण्डे और एक में coffee bean के टुकड़े डाल दिए। और बिना कुछ कहे बैठ के बरतनों को देखने लगे।
20 मिनट के बाद उसने चुल्हे बंद कर दिए। एक प्लेट में आलू, एक में अण्डे और एक कप में कॉफ़ी रख दी। और अपनी बेटी की तरफ घूमकर पूछा – तुमने क्या देखा? बेटी ने हंसकर जवाब – आलू, अण्डे और कॉफ़ी। पिता ने कहा – और नज़दीक से छूकर देखो। बेटी ने आलू छूकर देखे तो महसूस किया वो काफी नरम हो चुके थे। पिता ने फिर कहा – अब अंडे को छीलकर देखो। बेटी ने वैसा ही किया और देखा अंदर से भी अण्डे सख्त हो चुके थे। आखिर में पिता ने कॉफ़ी कप पकड़ाते हुए कहा अब इसे पियो। बेटी ने कॉफ़ी पी। और कॉफ़ी की इतनी प्यारी महक से उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।
उसने बड़े उत्सुकता के अपने पिता से पूछा – इन सब चीज़ों का क्या मतलब है?
इसपर उसके पिता ने समझाया। आलू, अण्डे और कॉफ़ी तीनो एक ही परिस्थिति से गुजरे थे, तीनों को एक जैसे ही उबाला था। परन्तु जब बाहर निकाला तो तीनों की प्रतिक्रिया अलग-अलग थी। जब हमने आलू को उबालने रखा था तो वो बहुत सख्त था परन्तु उबालने के बाद वो नरम हो गया।
जब अण्डे को रखा था तब वो अन्दर से पानी की तरह तरल था परन्तु उबालते ही सख्त हो गया।
उसी तरह जब कॉफ़ी के दानों को डाला था तब वो सब अलग-अलग थे मगर उबालते ही सब आपस में घुल गए और पानी को भी अपने रंग में रंग दिया।
ठीक इसी तरह ज़िन्दगी में भी अलग-अलग परिस्थितियां आती है। जब आपको खुद ही फैसला करना होता है कि आपको किस परिस्थिति को कैसे सम्भालना है।
दोस्तों परेशानियाँ हर किसी के साथ आती हैं। परन्तु इनका हल निकालने का तरीका ढूँढना चाहिए। इनसे हार मान के खुद के मनोबल को गिराना सही नहीं है।
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दिल्ली शहर लोगो को आकर्षित करने वाला शहर है, यहाँ की संस्कृति और धर्म
दोनों ही लोगो को आकर्षित करते है। आकर्षण की एक और वजह यहाँ बना अक्षरधाम मंदिर – Akshardham Temple
भी है जो स्वामीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर विश्व
के विशालकाय मंदिरों में से यह एक है। इसका विशाल आर्किटेक्चर इसके इतिहास
को बयाँ करता है। आइये इस मनमोहक और विशाल मंदिर की कुछ बातो को जानते है –
अक्षरधाम या स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर एक हिन्दू मंदिर है और भारत के
नयी दिल्ली में स्थापित साहित्यिक-सांस्कृतिक स्थान है। यह मंदिर दिल्ली
अक्षरधाम या स्वामीनारायण अक्षरधाम के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर
में लाखो हिन्दू साहित्यों और संस्कृतियों और कलाकृतियों को मनमोहक अंदाज़
में दर्शाया गया है।
दिल्ली में आने वाले 70% यात्रियों को अक्षरधाम मंदिर आकर्षित करता है।
इस मंदिर को डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने 6 नवम्बर 2005 को शासकीय रूप से
खोला था। यह मंदिर यमुना के तट पर बना हुआ है और 2010 में खेले जाने वाले
कामनवेल्थ गेम्स भी दिल्ली के इसी भाग में खेले गए थे। कॉम्प्लेक्स के बीच
में बना यह मंदिर वास्तु शास्त्र और पंचरात्र शास्त्र के अनुसार बना हुआ
है।
इस कॉम्प्लेक्स में अभिषेक मंडप, सहज आनंद वाटर शो, थीम गार्डन और तीन
प्रदर्शनी (Exhibition) सहजआनंद दर्शन, नीलकंठ दर्शन और संस्कृति दर्शन है।
स्वामीनारायण में हिन्दुओ के अनुसार अक्षरधाम शब्द का अर्थ भगवान के घर से
है और भगवान के भक्तो का ऐसा मानना है की अक्षरधाम भगवान का निवास स्थान
हुआ करता था।
स्वामीनारायण अक्षरधाम कॉम्प्लेक्स का मुख्य आकर्षण अक्षरधाम मंदिर है।
यह 141 फूट (43 मी.) ऊँचा, 316 फूट (96 मी.) फैला और 356 फूट लंबा (109
मी.) है। यह जटिलतापूर्वक इसे फूलो, पशु, नर्तको, संगीतकारों और अनुयायियों
से सजाया गया है।
महर्षि वास्तु आर्किटेक्चर के अनुसार ही इसे डिजाईन किया गया है। इसे
मुख्य रूप से राजस्थानी गुलाबी पत्थरो से और इतालियन कार्रारा मार्बल से
बनाया गया। इसका निर्माण हिन्दू शिल्प शास्त्र के अनुसार ही किया गया है और
साथ ही दुसरे इतिहासिक हिन्दू मंदिरों की तरह ही इसमें भी मेटल का उपयोग
नही किया गया है। इसे बनाते समय स्टील और कोंक्रीट का उपयोग भी नही किया
गया।
इस मंदिर में 234 आभूषित किये हुए पिल्लर, 9 गुम्बद और 20000 साधुओ,
अनुयायियों और आचार्यो की मूर्तियाँ है। मंदिर के निचले भाग में गजेन्द्र
पीठ भी है और हाथी को श्रधांजलि देने वाला एक स्तम्भ भी है और हिन्दू
साहित्य और संस्कृति में इसे बहुत महत्त्व दिया जाता है। इसमें 148 विशाल
हाथी बनाये गए है जिनका वजन तक़रीबन 3000 टन होगा।
मंदिर के बीच के गुम्बद के निचे 11 फूट (3.4 मी) ऊँची स्वामीनारायण
भगवान की अभयमुद्रा में बैठी हुई मूर्ति है। स्वामीनारायण मंदिर जातिगत
गुरुओ के विचारो की प्रतिमाओ से घिरा हुआ है। स्वामीनारायण में बनी हर एक
मूर्ति हिन्दू परंपरा के अनुसार पञ्च धातु से बनी हुई है। इस मंदिर में
सीता-राम, राधा-कृष्णा, शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियाँ भी है।
अक्षरधाम मंदिर के पीछे संस्था BAPS का हात है, जिसका अर्थ बोचासनवासी
श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था से है। इसके प्रमुख स्वामी
महाराज ने मंदिर को बनाने में मुख्य भूमिका निभाई है।
आज अक्षरधाम मंदिर दिल्ली शहर का मुख्य आकर्षण केंद्र बन चूका है और
वर्तमान में अक्षरधाम मंदिर के बिना दिल्ली शहर की कल्पना करना मुश्किल ही
नही नामुमकिन है।
भारत में अक्षरधाम मंदिर जैसे बहोत से इतिहासिक मंदिर बने हुए है, आज
यही मंदिर भारत के इतिहासिक और इतिहासिक कलाकृतियों की बयाँ करते है। हमें
भारत के इन मंदिर पर हमेशा गर्व होना चाहिए और गर्व होना चाहिए की आज भी हम
एक ऐसे देश में रहते है जहाँ के लोग सदियों पुरानी परम्पराओ को आज भी
मानते है।
अक्षरधाम मंदिर की कुछ रोचक बाते –Interesting Facts About Akshardham Temple In Delhi
1. अक्षरधाम मंदिर का एक और आकर्षण गार्डन ऑफ़ इंडिया है, मुख्य रूप से
यह मंदिर के क्षेत्र में बना हरा लॉन है। इस गार्डन में बहुत सी कांसे की
मूर्तियाँ बनी हुई है जो देश के कुछ महापुरुषों को श्रधांजलि देते हुए नजर
आते है जैसे सैनिक, बाल हीरो और महान महिलाये और महापुरुष देशभक्त।
2. अक्षरधाम मंदिर की मुख्य ईमारत एक सरोवर से घिरी हुई है जिसे नारायण
सरोवर कहा जाता है, जिसमे देश की तक़रीबन 151 विशाल सरोवर और नदियों का पानी
भरा हुआ है। सरोवर के पास ही में 108 गौमुख भी बने हुए है और माना जाता है
की यह 108 गौमुख 108 हिन्दू भगवान का प्रतिनिधित्व करते है।
3. इस सुन्दर और मनमोहक मंदिर में आकर्षित करने वाला एक म्यूजिकल
फाउंटेन शो भी है। यह शो हर शाम 15 मिनट तक होता है। इस शो में जीवनचक्र भी
दिखाया जाता है, जो इंसान के जन्म से शुरू होता है और मृत्यु पर खत्म होता
है, इसे दिखाते समय ही म्यूजिकल फाउंटेन का उपयोग किया जाता है।
4. अक्षरधाम मंदिर में एक और आकर्षित गार्डन है जिसे कमल बाग़ भी कहा
जाता है, इसका नाम इसके आकार के आधार पर ही रखा गया है। यह गार्डन पवित्रता
का स्वरुप है। कहा जाता है की इतिहास के कई महापुरुष, दर्शनशास्त्री और
वैज्ञानिक इस गार्डन में आये थे।
5. गिनीज बुक और वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी अक्षरधाम मंदिर का नाम शामिल है।
अक्षरधाम मंदिर को विश्व का सबसे विशाल हिन्दू मंदिर माना जाता है। इस
मंदिर की एक और विशेष बात यह है की इसे बनाने में सिर्फ पाँच साल का समय
लगा था, यह निश्चित ही आश्चर्यदायक बात है। तक़रीबन 11000 कलाकारों और
अनगिनत सहयोगियों ने मिलकर इस विशाल मंदिर का निर्माण किया था, नवम्बर 2005
में इस मंदिर की स्थापना की गयी थी।
6. अक्षरधाम में दर्शनार्थियों के आकर्षण के लिए बहोत से आकर्षण है। इस
मंदिर में बहोत सी इमारते और आकर्षित स्तम्भ बने हुए है। जो भारतीय इतिहास
की महानता और संस्कृति को दर्शाते है। इस मंदिर में एक फिल्म स्क्रीन भी
लगी हुई है जिसमे भगवान स्वामीनारायण के जीवन पर आधारित फिल्म दिखायी जाती
है।
7. अक्षरधाम मंदिर में यग्नपुरुष कुण्ड भी है, जिसे विश्व का शबे बड़ा
कुण्ड भी कहा जाता है। कमल के आकार में बने इस कुण्ड में 108 छोटे
तीर्थस्थान और 2870 सीढियाँ बनी हुई है। कहा जाता है की इस कुण्ड का आकार
ज्योमेट्री के हिसाब से एकदम परफेक्ट है। और यह कुण्ड भारतीय इतिहास के
महान गणितग्यो की महानता को दर्शाता है।
Doston Aaj ke Iss Vishes Divas Par Jo Ki 14 November hai Jise Chacha Nehru ke NAAM sE jANA jata hai unke baare me likh rha hu Pt. JAWAHAR LAL NEHRU....
आज़ादी के लिये लड़ने वाले और संघर्ष करने वाले मुख्य महापुरुषों में से जवाहरलाल नेहरु एक थे, वे पंडित जवाहरलाल नेहरु – Pandit Jawaharlal Nehru के नाम से जाने जाते थे, जिन्होंने अपने भाषणों से लोगो का दिल जीत लिया था। इसी वजह से वे आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री भी बने और बाद में उनकी महानता को उनकी बेटी और पोते ने आगे बढाया। इस महान महापुरुष के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी :
पूरा नाम : जवाहरलाल मोतीलाल नेहरु जन्म : 14 नव्हंबर 1889 जन्मस्थान : इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) पिता : मोतीलाल नेहरु माता : स्वरूपरानी नेहरु शिक्षा : 1910 में केब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनटी
कॉलेज से उपाधि संपादन की. 1912 में ‘इनर टेंपल’ इस लंडन कॉलेज से बॅरिस्ट
बॅरिस्टर की उपाधि संपादन की। विवाह : कमला के साथ (1916 में)
जवाहरलाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता के पहले और बाद में भारतीय राजनीती के मुख्य केंद्र बिंदु थे। वे महात्मा गाँधी
के सहायक के तौर पर भारतीय स्वतंत्रता अभियान के मुख्य नेता थे जो अंत तक
भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए लड़ते रहे और स्वतंत्रता के बाद भी 1964 में
अपनी मृत्यु तक देश की सेवा की। उन्हें आधुनिक भारत का रचयिता माना जाता
था। पंडित संप्रदाय से होने के कारण उन्हें पंडित नेहरु भी कहा जाता था।
जबकि बच्चो से उनके लगाव के कारण बच्चे उन्हें “चाचा नेहरु” के नाम से जानते थे।
वे मोतीलाल नेहरु के बेटे थे, जो एक महान वकील और राष्ट्रिय समाजसेवी
थे। नेहरु ट्रिनिटी विश्वविद्यालय, कैंब्रिज से स्नातक हुए। जहा उन्होंने
ने वकीली का प्रशिक्षण लिया और भारत वापिस आने के बाद उन्हें अल्लाहाबाद
उच्च न्यायालय में शामिल किया गया। लेकिन उन्हें भारतीय राजनीती में ज्यादा
रुचि थी और 1910 के स्वतंत्रता अभियान में वे भारतीय राजनीति में कम उम्र
में ही शामिल हो गये, और बाद में भारतीय राजनीती का केंद्र बिंदु बने। 1920
में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल होकर उनके महान और प्रमुख नेता
बने, और बाद में पूरी कांग्रेस पार्टी ने उन्हें एक विश्वसनीय सलाहकार
माना, जिनमे गांधीजी भी शामिल थे। 1929 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप
में, नेहरु ने ब्रिटिश राज से सम्पूर्ण छुटकारा पाने की घोषणा की और भारत
को पूरी तरह से स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मांग की। नेहरु और कांग्रेस ने
1930 में भारतीय स्वतंत्रता अभियान का मोर्चा संभाला ताकि देश को आसानी से
आज़ादी दिला सके। उनके सांप्रदायिक भारत की योजना को तब सभी का सहयोग मिला
जब वे राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेता थे। इस से अलग हुई मुस्लिम लीग
बहोत कमजोर और गरीब बन चुकी थी। उनके स्वतंत्रता के अभियान को तब सफलता
मिली जब 1942 के ब्रिटिश भारत छोडो अभियान में ब्रिटिश बुरी तरह से पीछे रह
गये और उस समय कांग्रेस को देश की सबसे सफल और महान राजनितिक संस्था माना
गया था। मुस्लिमो की बुरि हालत को देखते हुए मुहम्मद अली जिन्नाह
ने मुस्लिम लीग का वर्चस्व पुनर्स्थापित किया। लेकिन नेहरु और जिन्नाह का
एक दुसरे की ताकत बाटने का समझौता असफल रहा और आज़ादी के बाद 1947 में ही
भारत का विभाजन किया गया।
1941 में जब गांधीजी ने नेहरु को एक बुद्धिमान और सफल नेता का दर्जा
दिया था उसी को देखते हुए आज़ादी के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें ही स्वतंत्र
भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना। प्रधानमंत्री बनने के बाद ही,
उन्होंने नविन भारत के अपने स्वप्न को साकार करने के प्रयास किये। 1950 में
जब भारतीय कानून के नियम बनाये गये, तब उन्होंने भारत का आर्थिक, राजनितिक
और सामाजिक विकास शुरू किया। विशेषतः उन्होंने भारत को एकतंत्र से
लोकतंत्र में बदलने की कोशिश की, जिसमे बहोत सारी पार्टिया हो जो समाज का
विकास करने का काम करे। तभी भारत एक लोकशाही राष्ट्र बन पायेगा। और विदेश
निति में जब वे दक्षिण एशिया में भारत का नेतृत्व कर रहे थे तब भारत के
विश्व विकास में अभिनव को दर्शाया।
नेहरु की नेतागिरी में कांग्रेस देश की सबसे सफल पार्टी थी जिसने
हर जगह चाहे राज्य हो या लोकसभा हो विधानसभा हो हर जगह अपनी जीत का परचम
लहराया था। और लगातार 1951, 1957 और 1962 के चुनावो में जित हासिल की थी।
उनके अंतिम वर्षो में राजनितिक दबाव (1962 के सीनों-भारत युद्ध में असफलता)
के बावजूद वे हमेशा ही भारतीय लोगो के दिलो में बसे रहेंगे। भारत में उनका
जन्मदिन “बालदिवस” के रूप में मनाया जाता है।
पंडित जवाहरलाल नेहरु उर्फ़ चाचा नेहरु ने अपने जीवन में कभी हार नहीं
मानी थी। वे सतत भारत को आज़ाद भारत बनाने के लिए ब्रिटिशो के विरुद्ध लड़ते
रहे। और एक पराक्रमी और सफल नेता साबित हुए। वे हमेशा गांधीजी के आदर्शो पर
चलते थे। उनका हमेशा से यह मानना था की,
“असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश और सिद्धांत भूल जाते है.”
एक नजर में जवाहरलाल नेहरु की जानकारी – Information Of Jawaharlal Nehru In Hindi
1912 में इग्लंड से भारत आने के बाद जवाहरलाल नेहरु इन्होंने अपने
पिताजीने ज्यूनिअर बनकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु
किया।
1916 में राजनीती का कार्य करने के उद्देश से पंडित नेहरू ने गांधीजी से
मुलाकात की। देश की राजनीती में भारतीय स्वतंत्र आंदोलन में हिस्सा लिया
जाये, ऐसा वो चाहते थे।
1916 में उन्होंने डॉ.अॅनी बेझंट इनके होमरूल लीग में प्रवेश किया। 1918
में वो इस संघटने के सेक्रेटरी बने। उसके साथ भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस के
कार्य में भी उन्होंने भाग लिया।
1920 में महात्मा गांधी ने शुरु किये हुये असहयोग आंदोलन में नेहरूजी शामील हुये। इस कारण उन्हें छह साल की सजा हुयी।
1922 – 23 में जवाहरलाल नेहरूजी इलाहाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गये।
1927 में नेहारुजीने सोव्हिएल युनियन से मुलाकात की। समाजवाद के प्रयोग से वो प्रभावित हुये और उन्ही विचारोकी ओर खीचे चले गए।
1929 में लाहोर में राष्ट्रिय कॉग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन के अध्यक्ष
चुने गये और इसी अधिवेशन में और इसी अधिवेशन कॉग्रेस ने पुरे स्वातंत्र्य
की मांग की इसी अधिवेशन भारतको स्वतंत्र बनानेका निर्णय लिया गया और
‘संपूर्ण स्वातंत्र्य’ का संकल्प पास किया गया।
यह फैसला पुरे भारतमे पहुचाने के लिए 26 जनवरी 1930 यह दिन राष्ट्रीय
सभा में स्थिर किया गया। हर ग्राम में बड़ी सभाओका आयोजन किया गया। जनता ने
स्वातंत्र्य के लिये लढ़नेकी शपथ ली इसी कारन 26 जनवरी यह दिन विशेष माना
जाता है।
1930 में महात्मा गांधीजीने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया जिसमे नेहरुजीका शामील होना विशेष दर्जा रखता था।
1937में कॉग्रेस ने प्रातीय कानून बोर्ड चुनाव लढ़नेका फैसला लिया और बहुत बढ़िया यश संपादन किया जिसका प्रचारक भार नेहरुजी पर था।
1942 के ‘चले जाव’ आंदोलनको भारतीय स्वातंत्र्य आंदोलन में विशेष दर्जा
है। कॉंग्रेस ने ये आंदोलन शुरु करना चाहिये इस लिये गांधीजी के मन का
तैयार करने के लिए पंडित नेहरु आगे आये। उसके बाद तुरंत सरकारने उन्हें
गिरफ्तार करके अहमदनगर के जैल कैद किया। वही उन्होंने ‘ऑफ इंडिया’ ये ग्रंथ
लिखा।
1946 में स्थापन हुये भारत के अंतरिम सरकार ने पंतप्रधान के रूप नेहरु
को चुना। भारत स्वतंत्र होने के बाद वों स्वतंत्र भारत के पहले पंतप्रधान
बने। जीवन के आखीर तक वो इस पद पर रहे। 1950 में पंडित नेहरु ने नियोजन
आयोग की स्थापना की। Jawaharlal Nehru Book – क़िताबे :-
1) आत्मचरित्र (1936) (Autobiography)
2) दुनिया के इतिहास का ओझरता दर्शन (1939) (Glimpses Of World History)
3) भारत की खोज (1946) (The Discovery Of India) आदी। Jawaharlal Nehru Award – पुरस्कार :-
*1955 में भारत का सर्वोच्च नागरी सम्मान ‘भारत रत्न’ पंडित नेहरु को देकर उन्हें सम्मानित किया गया। Jawaharlal Nehru – विशेषता :-
1) आधुनिक भारत के शिल्पकार।
2) पंडित नेहरु का जन्मदिन 14 नव्हंबर ये ‘बालक दिन’ के रूप में मनाया जाता है। Jawaharlal Nehru Death – मृत्यु :- 27 मई 1964 को यह महापुरुष सदा के लिये चला गया।
आधुनिक भारत के निर्माता एवं विश्व शांति के अग्रदूत के रूप में पं. जवाहरलाल नेहरु का नाम सदैव इतिहास में अमर रहेगा।
Doston Aaj Mai apko bata raha hu jaanimaani film BAHUBALI Ki History ke baare me....
Bahubali is moving towards its 50th day and total box office earning of film is also amazing. Movie has recorded as the biggest Indian cinema opener and the opening weekend box office collection of film was also incredible. The film is still running in its 7th week at descent rate and total collection of film is near around 578.95 Cr*. The movie is on 3rd position in the list of India’s biggest grosser list. PK is at first position and Bajrangi Bhaijaan has hold the 2nd position in the list.
Bahubali Lifetime Business: 615 Cr* [Globaly]
Bahubali – बाहुबली जैन समुदाय के लोगो के बीच एक आदरणीय नाम है, वे जैन धर्म के पहले तिर्थंकार और ऋषभनाथ के बेटे थे। कहा जाता है की उन्होंने एक साल तक पैरो पर खड़े होकर ही स्थिर तपस्या की थी इस समय उनके पैरो के आस-पास के काफी पेड़ भी बड़े हो गए थे। जैन सूत्रों के अनुसार बाहुबली की आत्मा जन्म और मृत्यु से परे थी, और हमेशा कैलाश पर्वत पर ही वे तपस्या करते थे। जैन लोग उन्हें आदर से सिद्ध कहते है।
Bahubali
बाहुबली जी का इतिहास और जानकारी – Bahubali history information in Hindi
गोमतेश्वर की मूर्ति उन्हें समर्पित होने की वजह से उन्हें गोमतेषा भी कहा जाता था। इस मूर्ति को गंगा साम्राज्य के मिनिस्टर और कमांडर चवुन्दराय ने बनवाया था, यह मूर्ति 57 फूट एकाश्म है, जो भारत के कर्नाटक राज्य के हस्सन जिले के श्रवनाबेलागोला पहाड़ी पर बनी हुई है। इस मूर्ति को 981 AD के दरमियाँ बनाया गया था। और दुनिया में यह सबसे विशाल मुक्त रूप से खड़ी मूर्ति है। वे मन्मथा के नाम से भी जाने जाते है।
बाहुबली पारिवारिक जीवन – Bahubali Early family life history
जैन सूत्रों के अनुसार, बाहुबली का जन्म ऋषभनाथ और सुनंदा को इक्षवाकू साम्राज्य के समय में अयोध्या में हुआ था। कहा जाता है की औषधि, तीरंदाजी, पुष्पकृषि और बहुत से कीमती रत्नों के ज्ञान में वे निपुण थे। बाहुबली का एक बेटा सोमकिर्ती (महाबाला) भी है।
जब ऋषभनाथ ने सन्यासी बनने का निर्णय लिया था, तब उन्होंने अपने साम्राज्य को 100 बेटो में बाटा था। जिसमे भरत को विनीता (अयोध्या) साम्राज्य दिया गया था और बाहुबली को दक्षिण भारत का अस्माका साम्राज्य दिया गया था, जिसकी राजधानी पोदनपुरा थी। सभी दिशाओ में धरती के छठे भाग को जीतने के बाद, भरत अपनी पूरी सेना के साथ राजधानी अयोध्यापुरी की ओर चल दिये। लेकिन चक्र-रत्न ने अयोध्यापुरी के प्रवेश द्वार पर ही उन्हें रोक दिया था। इसके बाद भरत के सभी 98 भाई जैन साधू बन गए और उन्होंने अपने साम्राज्य को वापिस सौप दिया।
कहा जाता है की साम्राज्य को लेकर और आपसी मतभेद के चलते भरत और बाहुबली के बीच कुल तीन प्रतियोगिताये हुई थी, पहला नयन-युद्ध, जल-युद्ध और मल्ल युद्ध। लेकिन बाहुबली ने अपने बड़े भाई भरत से तीनो युद्ध जीत लिये थे।
एक Indian Successful Entrepreneurs की Story आपके लिये पब्लिश कर रहें हैं। जिस पढ़कर आप चाहे किसी भी परिस्तिथि में हो आपमे ये विश्वास भर जायेंगा की आप भी कुछ कर सकते हो। आप भी बड़ा आदमी बन सकते हो और आपके सपने हकीकत में पुरे कर सकते है। –
कुँवर सचदेव – Kunwer Sachdeva भारत की लीडिंग पॉवर सोल्यूशन कंपनी सु-काम (Su-Kam) Sukam solar inverter के संस्थापक और एम् डी है और साथ ही वे एक महान खोजकर्ता, मार्केटर, प्रेरणादायक वक्ता और उद्योजक भी है। सचदेव के सु-काम के सफलता की कहानी “मेक इन इंडिया” का सबसे अच्छा और सबसे बड़ा उदाहरण है।
सचदेव का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, लेकिन सचदेव ने कभी भी अपनी आर्थिक परिस्थितियों को अपनी सफलता के बीच में नही आने दिया। और सिर्फ 15 वर्ष की आयु में ही वे एक महान सफल उद्योजक बन गए। अपने व्यवसाय की शुरुवात उन्होंने अपने बड़े भाई के साथ मिलकर साइकिल पर पेन बेचते हुए की थी और बाद में उन्होंने एक सफल केबल टीवी कम्युनिकेशन व्यवसाय की स्थापना दिल्ली में की थी। एक खोजकर्ता के रूप में उन्होंने जल्द ही भारत के पॉवर बैकअप इंडस्ट्री के विकास और उनकी जरूरतों को भाँप लिया था और 1998 में ही उन्होंने सु-काम पॉवर सिस्टम की स्थापना करने के लिए केबल टीवी के व्यवसाय को बंद करने की ठान ली।
कुछ ही सालो में कड़ी मशक्कत और महेनत करते हुए उन्होंने आज सु-काम को भारत की मुख्य कंपनियों में से एक बनाया। आज सु-काम इंडियन मल्टीनेशनल कारपोरेशन है और इसे भारत की सबसे विकसित और तेज़ी से बढ़ने वाली इंडस्ट्री में से एक माना जाता है। यह कंपनी तेज़ी से विकसित होने वाली टॉप 500 कंपनियों की सूचि में भी शामिल है। सचदेव ने भी तक़रीबन 90 देशो तक अपनी कंपनी को पहुचाया है और इसका लक्ष्य अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर भागो को कवर करना ही है।
खोजकर्ता – यूपीएस / इनवेटर इंडस्ट्री में खोज
दिल्ली यूनिवर्सिटी से मैथमेटिकल स्टेटिस्टिक्स और लॉ की डिग्री हासिल करने के साथ ही और साथ ही बिना किसी टेक्निकल बैकग्राउंड के होने के बावजूद उन्होंने पॉवर इलेक्ट्रॉनिक्स में महारत हासिल कर रखी थी। विविध व्यवसायों को सँभालते हुए भी वे सु-काम (Su-Kam) के आर & डी डिवीज़न के हेड बने।
इंडियन पॉवर बैकअप इंडस्ट्री में टेक्नोलॉजी और डिजाईन के लिए पेटेंट फाइल करने वाले सचदेव पहले भारतीय उद्योगपति थे। विश्व के पहले प्लास्टिक बॉडी इन्वर्टर के अविष्कार का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है और उनके इस अविष्कार को इंडिया टुडे ने “इनोवेशन ऑफ़ द डिकेड” का भी नाम दिया। कुंवर ने वर्ल्ड क्लास टेक्नोलॉजीज जैसे मोस्फेट (MOSFET), माइक्रो कंट्रोलर बेस्ड और DSP साइन वेव का अविष्कार कर पॉवर बैकअप इंडस्ट्री में क्रांति ला दी थी। उन्होंने भारत को “होम यूपीएस” भी दिया जिसमे यूपीएस और इन्वर्टर दोनों के गुण थे। सु-काम (Su-Kam) के आने से पहले इन्वर्टर उद्योग पर 100 से भी ज्यादा लोगो का शासन था जो घटिया माल बेच रहे थे – लेकिन कुंवर ने पुरे इन्वर्टर उद्योग को अपने अविष्कार से चुनौती दी रखी थी।
कुंवर अपनी उपलब्धियों से कभी संतुष्ट नही थे और उनमे हमेशा कुछ नयी टेक्नोलॉजी का अविष्कार करने की भूक लगी रहती। कुंवर को कई बार लगता था की, “यदि वर्तमान में सभी इलेक्ट्रॉनिक टच स्क्रीन और वाय-फाई से जुड़े है तो होम यूपीएस क्यु नही?” इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यूपीएस की टेक्नोलॉजी में बदलाव किये। और आज कुंवर अपना पहला टच स्क्रीन यूपीएस लांच करने के लिए तैयार है जिसमे वाय-फाई की सुविधा भी दी गयी है। एक दिन ऐसा भी होगा शायद ही किसी ने सोचा होगा।
पॉवर बैकअप इंडस्ट्री के विकास में उनके बहुत से महत्वपूर्ण योगदानो को देखते हुए उन्हें “इन्वर्टर मैन ऑफ़ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है।
दी सोलर मैन ऑफ़ इंडिया (The Solar Man of India) –
टेक्नोवेशन के प्रति कुंवर का प्यार हमेशा बढ़ता ही गया था। ग्रीन एनर्जी का निर्माण करने में उन्हें काफी रूचि थी उनकी इच्छा थी की भारत में हर जगह पर ग्रीन एनर्जी का निर्माण होना चाहिए। एक दशक पहले सौर उर्जा के उपकरण आने वाले दशको में क्रांति लायेंगे। उनके घर से सम्बंधित सौर उपकरणों में सोलरकॉन (एक्सिस्टिंग इन्वर्टर को सोलर इन्वर्टर में बदलता है) और ब्रेनी (दुनियाँ का पहला हाइब्रिड सोलर होम यूपीएस) शामिल है।
उन्होंने बहुत से छोटे हाउस रिमोट से लेकर बड़ी इंडस्ट्री के लिए भी सोलर उपकरणों की खोज की है। यूनिक सोलर DC सिस्टम के निर्माण में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। कुंवर के कठिन परिश्रम के बाद ही सु-काम (Su-kam) सर्वाधिक मार्किट शेयर पाने में सफल रही। फ़िलहाल सु-काम का लक्ष्य भारत के हर एक घर को सोलर एनर्जी से जोड़ना है।
उनका मंत्र यही है, “I innovate therefore I am”
बेहतरीन विक्रेता –
सु-काम की स्थापना के पहले वर्षो में ही कुंवर ने मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग के महत्त्व को जान लिया था और इसी वजह से सु-काम अखबार में विज्ञापन देने वाली पहली इन्वर्टर कंपनी बनी। कुंवर के पॉवर सोल्यूशन सेक्टर में आने से पहले किसी भी कंपनी का विशिष्ट प्रोडक्ट मैन्युअल या कैटेलॉग नही था लेकिन कुंवर ने इसे बदलकर सु-काम के सभी प्रोडक्ट का एक बेहतरीन और आकर्षित मैन्युअल प्रोडक्ट बनाया था।
कुंवर ने अपमी कंपनी सु-काम के लिए बेहतरीन मार्केटिंग स्ट्रेटेजी बना रखी थी और इससे पहले किसी कंपनी ने मार्केटिंग स्ट्रेटेजी नही बनायी थी लेकिन इसके बाद 90 के दशक में सभी ने उनके रास्तो पर चलते हुए मार्केटिंग स्ट्रेटेजी बनाना शुरू किया। और इसके बाद सु-काम प्रसिद्ध ढाबो के बोर्ड स्वयं बनाकर उन्हें गिफ्ट करती थी और उनपर अपने उपकरणों का विज्ञापन भी देती थी। इसके पीछे एक कहानी भी है जिसके अनुसार एक बार कुंवर कश्मीर में दाल सरोवर देखने गए थे और वहा उन्होंने बहुत सी खुबसूरत “सीकर नाव” भी देखि और अगले ही दिन वे सभी नाव सु-काम में परिवर्तित हो गयी।
कुंवर उन महान उद्योजको में से एक है जिन्होंने इंटरनल ब्रांडिंग के महत्त्व को समझा। कुंवर ने सु-काम कल्चर को इस तरह से सजाया था की उनका पूरा स्टाफ सभी त्यौहार (इसमें सु-काम का खेल सप्ताह भी शामिल है) ख़ुशी से मनाते थे, उनका स्टाफ किसी बड़े परिवार से कम नही था।
एतव और अभिनेता रवि किशन के साथ मिलकर कुंवर ने अपना पहला रियलिटी टीवी शो इंडिया ग्रेटेस्ट सेल्समेन – सेल का बाज़ीगर भी लांच किया। इससे पहले विक्रेता लोगो को प्रेरित करने के लिए किसी ने भी इस तरह के शो को नही देखा था। इस शो को बहुत लोगो ने पसंद किया और हजारो और लाखो लोगो ने इसमें भाग लिया। और इसके विजेता आज सु-काम में काम करते है।
भारतीय ब्रांड को वैश्विक बनाना –
कुंवर सचदेव का हमेशा से ही यह मानना था की यदि आप सपने देख सकते हो तो तो आप उन्हें पूरा भी कर सकते हो। और उनकी इसी सोच ने सु-काम को भारत की सबसे बड़ी पॉवर बैकअप सोल्यूशन कंपनी बनाया। वे अपने इस भारतीय ब्रांड को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध करने चाहते थे और ऐसा करने में वे सफल भी हुए। अपने ब्रांड को वैश्विक स्तर पर फ़ैलाने के लिए उन्होंने कई विदेश यात्राये भी की थी। कुंवर के मार्गदर्शन में ही सु-काम तक़रीबन 90 देशो में स्थापित हो सकी। सु-काम अब इंटरनेशनल ब्रांड बन चूका था और इसके साथ ही अफ्रीका और नेपाल जैसे देशो में सु-काम को कई अवार्ड भी मिले। अफ्रीका में लोग चीनी और अमेरिकन कंपनियों की तुलना में इस “मेड इन इंडिया” ब्रांड पर ज्यादा भरोसा करते है।
अवार्ड और नामनिर्देशन –
उद्योगपति, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के चलते उन्हें बहुत से पुरस्कार मिले है। जिसमे मुख्य रूप से भारत सरकार द्वारा दिया गया “भारत शिरोमणि” और एर्न्स्ट एंड यंग का “साल के सर्वश्रेष्ट उद्योगपति” अवार्ड शामिल है।
आज कुंवर सचदेव की जीवनी को देखते हुए हम निश्चित तौर पे यह कह सकते है की किसी भी व्यक्ति को सफल होने के लिए डिग्री की जरुरत नही होती, बस आपका टैलेंट ही आपको सफल आदमी बनाता है। क्या आप जानते है कि बिल गेट्स्और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकेरबेर्ग कॉलेज से निकाले गए (Dropout) हैं, फिर भी वे सफल हैं। क्योंकि दोस्तों,
“रात नही ख्वाब बदलता है, मंजिल नही कारवां बदलता है, जज्बा रखे हरदम जीतने का क्योंकि किस्मत चाहे बदले या न बदले लेकिन वक्त जरुर बदलता है।”