Tuesday, August 02, 2022

दूसरी पुतली चित्रलेखा ~ राजा विक्रम और बेताल की कथा!

 दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है-


एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उसे श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके लौटने लगे। उनके मुड़ते ही साधु ने आवाज़ दी और उन्हें रुकने को कहा। विक्रमादित्य रुक गए और साधु ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एक फल दिया। उसने कहा- "जो भी इस फल को खाएगा तेजस्वी और यशस्वी पुत्र प्राप्त करेगा। फल प्राप्त कर जब वे लौट रहे थे, तो उनकी नज़र एक तेज़ी से दौड़ती महिला पर पड़ी। दौड़ते-दौड़ते एक कुँए के पास आई और छलांग लगाने को उद्यत हुई। विक्रम ने उसे थाम लिया और इस प्रकार आत्महत्या करने का कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि उसकी कई लड़कियाँ हैं पर पुत्र एक भी नहीं। चूँकि हर बार लड़की ही जन्म लेती है, इसलिए उसका पति उससे नाराज है और गाली-गलौज तथा मार-पीट करता है। वह इस दुर्दशा से तंग होकर आत्महत्या करने जा रही थी। राजा विक्रमादित्य ने साधु वाला फल उसे दे दिया तथा आश्वासन दिया कि अगर उसका पति फल खाएगा, तो इस बार उसे पुत्र ही होगा। कुछ दिन बीत गए।

एक दिन एक ब्राह्मण विक्रम के पास आया और उसने वही फल उसे भेट किया। विक्रम स्त्री की चरित्रहीनता से बहुत दुखी हुए। ब्राह्मण को विदा करने के बाद वे फल लेकर अपनी पत्नी के पास आए और उसे वह फल दे दिया। विक्रम की पत्नी भी चरित्रहीन थी और नगर के कोतवाल से प्रेम करती थी। उसने वह फल नगर कोतवाल को दिया ताकि उसके घर यशस्वी पुत्र जन्म ले। नगर कोतवाल एक वेश्या के प्रेम में पागल था और उसने वह फल उस वेश्या को दे दिया। वेश्या ने सोचा कि वेश्या का पुत्र लाख यशस्वी हो तो भी उसे सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त हो सकती है। उसने काफी सोचने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि इस फल को खाने का असली अधिकारी राजा विक्रमादित्य ही है। उसका पुत्र उसी की तरह योग्य और सामर्थ्यवान होगा तो प्रजा की देख-रेख अच्छी तरहा होगी और सभी खुश रहेगे। यही सोचकर उसने विक्रमादित्य को वह फल भेंट कर दिया। फल को देखकर विक्रमादित्य ठगे-से रह गए। उन्होंने पड़ताल कराई तो नगर कोतवाल और रानी के अवैध सम्बन्ध का पता चल गया। वे इतने दुखी और खिन्न हो गए कि राज्य को ज्यों का त्यों छोड़कर वन चले गए और कठिन तपस्या करने लगे।

चूँकि विक्रमादित्य देवताओं और मनुष्यों को समान रुप से प्रिय थे, देवराज इन्द्र ने उनकी अनुपस्थिति में राज्य की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली देव भेज दिया। वह देव नृपविहीन राज्य की बड़ी मुस्तैदी से रक्षा तथा पहरेदारी करने लगा। कुछ दिनों के बाद विक्रमादित्य का मन अपनी प्रजा को देखने को करने लगा। जब उन्होंने अपने राज्य में प्रवेश करने की चेष्टा की तो देव सामने आ खड़ा हुआ। उसे अपनी वास्तविक पहचान देने के लिए विक्रम ने उससे युद्ध किया और पराजित किया। पराजित देव मान गया कि उसे हराने वाले विक्रमादित्य ही हैं और उसने उन्हें बताया कि उनका एक पिछले जन्म का शत्रु यहाँ आ पहुँचा है और सिद्धि कर रहा है। वह उन्हें खत्म करने का हर सम्भव प्रयास करेगा।

यदि विक्रम ने उसका वध कर दिया तो लम्बे समय तक वे निर्विघ्न राज्य करेंगे। योगी के बारे में सब कुछ बताकर उस देव ने राजा से अनुमति ली और चला गया। विक्रम की चरित्रहीन पत्नी तब तक ग्लानि से विष खाकर मर चुकी थी। विक्रम ने आकर अपना राजपाट सम्भाल लिया और राज्य का सभी काम सुचारुपूर्वक चलने लगा। कुछ दिनों के बाद उनके दरबार में वह योगी आ पहुँचा। उसने विक्रम को एक ऐसा फल दिया जिसे काटने पर एक कीमती लाल निकला। पारितोषिक के बदले उसने विक्रम से उनकी सहायता की कामना की। विक्रम सहर्ष तैयार हो गए और उसके साथ चल पड़े। वे दोनों श्मशान पहुँचे तो योगी ने बताया कि एक पेड़ पर बेताल लटक रहा है और एक सिद्धि के लिए उसे बेताल की आवश्यकता है। उसने विक्रम से अनुरोध किया कि वे बेताल को उतार कर उसके पास ले आएँ।

विक्रम उस पेड़ से बेताल को उतार कर कंधे पर लादकर लाने की कोशिश करने लगे। बेताल बार-बार उनकी असावधानी का फायदा उठा कर उड़ जाता और पेड़ पर लटक जाता। ऐसा चौबीस बार हुआ। हर बार बेताल रास्ते में विक्रम को एक कहानी सुनाता। पच्चीसवीं बार बेताल ने विक्रम को बताया कि जिस योगी ने उसे लाने भेजा है वह दुष्ट और धोखेबाज़ है। उसकी तांत्रिक सिद्धी की आज समाप्ति है तथा आज वह विक्रम की बलि दे देगा जब विक्रम देवी के सामने सर झुकाएगा। राजा की बलि से ही उसकी सिद्धि पूरी हो सकती है।

विक्रम को तुरन्त इन्द्र के देव की चेतावनी याद आई। उन्होंने बेताल को धन्यवाद दिया और उसे लादकर योगी के पास आए। योगी उसे देखकर अत्यन्त हर्षित हुआ और विक्रम से देवी के चरणों में सर झुकाने को कहा। विक्रम ने योगी को सर झुकाकर सर झुकाने की विधि बतलाने को कहा। ज्योंहि योगी ने अपना सर देवी चरणों में झुकाया कि विक्रम ने तलवार से उसकी गर्दन काट दी। देवी बलि पाकर प्रसन्न हुईं और उन्होंने विक्रम को दो बेताल सेवक दिए। उन्होंने कहा कि स्मरण करते ही ये दोनों बेताल विक्रम की सेवा में उपस्थित हो जाएँगे। विक्रम देवी का आशिष पाकर आनन्दपूर्वक वापस महल लौटे।


Monday, July 25, 2022

सिंहासन बत्तीसी-1--पहली पुतली रत्नमंजरी~राजा विक्रम के जन्म तथा सिंहासन प्राप्ति की कथा!

 पहली पुतली रत्नमंजरी राजा विक्रम के जन्म तथा इस सिंहासन प्राप्ति की कथा बताती है। वह इस प्रकार है:


आर्यावर्त में एक राज्य था जिसका नाम था अम्बावती। वहाँ के राजा गंधर्वसेन ने चारों वर्णों की स्त्रीयों से चार विवाह किये थे। ब्राह्मणी के पुत्र का नाम ब्रह्मवीत था। क्षत्राणी के तीन पुत्र हुए- शंख, विक्रम तथा भर्तृहरि। वैश्य पत्नी ने चन्द्र नामक पुत्र को जन्म दिया तथा शूद्र पत्नी ने धन्वन्तरि नामक पुत्र को। ब्रह्मणीत को गंधर्वसेन ने अपना दीवान बनाया, पर वह अपनी जिम्मेवारी अच्छी तरह नहीं निभा सका और राज्य से पलायन कर गया। कुछ समय भटकने के बाद धारानगरी में ऊँचा ओहदा प्राप्त किया तथा एक दिन राजा का वध करके ख़ुद राजा बन गया। काफी दिनों के बाद उसने उज्जैन लौटने का विचार किया, लेकिन उज्जैन आते ही उसकी मृत्यु हो गई।

क्षत्राणी के बड़े पुत्र शंख को शंका हुई कि उसके पिता विक्रम को योग्य समझकर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सकते हैं और उसने एक दिन सोए हुए पिता का वध करके स्वयं को राजा घोषित कर दिया। हत्या का समाचार दावानल की तरह फैला और उसके सभी भाई प्राण रक्षा के लिए भाग निकले। विक्रम को छोड़कर बाकी सभी भाइयों का पता उसे चल गया और वे सभी मार डाले गए। बहुत प्रयास के बाद शंख को पता चला कि घने जंगल में सरोवर के बगल में एक कुटिया में विक्रम रह रहा है तथा कंदमूल खाकर घनघोर तपस्या में रत है। वह उसे मारने की योजना बनाने लगा और एक तांत्रिक को उसने अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया।

योजनानुसार तांत्रिक विक्रम को भगवती आराधना के लिए राज़ी करता तथा भगवती के आगे विक्रम के सर झुकाते ही शंख तलवार से वार करके उसकी गर्दन काट डालता। मगर विक्रम ने खतरे को भाँप लिया और तांत्रिक को सर झुकाने की विधि दिखाने को कहा। शंख मन्दिर में छिपा हुआ था। उसने विक्रम के धोखे में तांत्रिक की हत्या कर दी। विक्रम ने झपट कर शंख की तलवार छीन कर उसका सर धड़ से अलग कर दिया। शंख की मृत्यु के बाद उसका राज्यारोहण हुआ। एक दिन शिकार के लिए विक्रम जंगल गए। मृग का पीछा करते-करते सबसे बिछुड़कर बहुत दूर चले आए। उन्हें एक महल दिखा और पास आकर पता चला कि वह महल तूतवरण का है जो कि राजा बाहुबल का दीवान है। तूतवरण ने बात ही बात में कहा कि विक्रम बड़े ही यशस्वी राजा बन सकते हैं, यदि राजा बाहुबल उनका राजतिलक करें। और उसने यह भी बताया कि भगवान शिव द्वारा प्रदत्त अपना स्वर्ण सिंहासन अगर बाहुबल विक्रम को दे दें तो विक्रम चक्रवर्ती सम्राट बन जांएगे। बाहुबल ने विक्रम का न केवल राजतिलक किया, बल्कि खुशी-खुशी उन्हें स्वर्ण सिंहासन भी भेंट कर दिया। कालांतर में विक्रमादित्य चक्रवर्ती सम्राट बन गए और उनकी कीर्तिपताका सर्वत्र लहरा उठी।

Thursday, March 03, 2022

Motivational Speech

 दोस्तों मनुष्य की जिंदगी में सुख और दुख हमेशा साथ साथ चलते हैं व्यक्ति, को सभी तरह के समय के लिए तैयार रहना चाहिए लेकिन दुख के समय में कई लोग बुरी तरह टूट जाते हैं, और आगे बढ़ने की उम्मीद छोड़ देते हैं। दोस्तों जब आप संघर्ष कर रहे होते हैं तो रास्ते मे बहुत सारे उतार चढ़ाव आते हैं। लेकिन इन उतार से जो व्यक्ति डर जाता है वह कभी आगे नही बढ़ पाता और जो ऐसे समय में धैर्य बनाए रखते हुए आगे बढ़ता रहता है वह जीवन में कभी असफल नही हो सकता।


निराशा एक ऐसी बीमारी है कि एक बार कोई इसकी चपेट में आ जाए तो उससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है। अधिकांश लोग नए काम की शुरुआत बड़े उत्साह के साथ करते हैं। लेकिन अगर आपके द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर सफलता नहीं मिलती है, तो कुछ समय बाद सारा उत्साह खत्म होने लगता है। इसका सबसे बड़ा कारण उदासीनता यानी अपने आप में प्रेरणा की कमी है। काम चाहे छोटा हो या बड़ा उसे अच्छे से पूरा करने के लिए काफी मोटिवेशन की जरूरत होती है। आजकल की इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए आज हम कुछ  kahani humari jubaani लेकर आए हैं जिनके द्वारा आप किसी व्यक्ति अथवा छात्र के जीवन में उजाला ला सकते हैं।


इंतज़ार करने वालों को उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं

सफलता उन्हीं को मिलती है, जिनके जीवन का एक लक्ष्य होता है और वे अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार होते हैं। और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सच्चा दृढ़ संकल्प लेते हैं और इसके लिए वे लगातार प्रयास करते रहते है।


किसी भी सफलता की शुरुआत कोशिश करने से ही होती है। इसी बात पर एक बार चन्द्रगुप्त ने चाणक्य से पूछा “अगर किस्मत पहले लिखी जा चूकी है तो कोशिश करने से क्या मिलेगा” इस पर चाणक्य ने जवाब दिया “क्या पता किस्मत में लिखा हो कोशिश करने से ही मिलेगा” इसीलिए हम भी कहते है सफल होना है तो कोशिश तो करनी ही पड़ेगी

अक्सर कोई भी काम शुरू करने से पहले लोग उसके फायदे, नुकसान, परिणाम, आदि के बारे में सोचने लगते हैं और जब वे ऐसा करते हैं तो हम एक कदम आगे बढ़ने से पहले ही खुद को पीछे धकेल देते हैं क्योंकि आपको कुछ नया मिलता है। अगर आप काम पर जाते हैं तो आपको जरूर लगेगा कि आप यह नहीं कर सकते या ऐसा करना आपके बस की बात नहीं है और जब आप लोगों के सामने इस पर चर्चा करते हैं तो लोग आपका मजाक उड़ाने लगते हैं।


हमें इन सब बातों को नजरअंदाज कर अपनी मंजिल की ओर बढ़ना है। इसलिए सभी छात्रों को भी अपने जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर होना चाहिए। तभी वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जो छात्र पूरी साल मेहनत, लगन और ईमानदारी से पढ़ाई करते हैं। वो ही क्लास में टॉप करते हैं।


ज़िन्दगी की कठनाइयों से भाग जाना आसान होता है,
जिंदगी में हर पहलू इम्तेहान होता है,
डरने वालो को नही मिलता कुछ ज़िन्दगी में,
लड़ने वालों के कदमो में जहांन होता है.

“मैदान से हारा हुआ इंसान तो फिर से जीत सकता है लेकिन मन से हारा हुआ इंसान कभी नहीं जीत सकता इसलिए मन से कभी हार मत मानना”

वहीं जिन छात्रों को पढ़ाई करने से डर लगता है अथवा यह सोचते हैं कि वे फेल हो जाएंगे और इसलिए मेहनत नहीं करते तो उनका ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है क्योंकि किसी काम को करने के लिए प्रयास करने और विश्वास रखने की जरूरत होती है। इसलिए सभी छात्रों को एक ध्येय बनाना चाहिए और उसे पाने के लिए बिना रुके तब तक प्रयास करते रहना चाहिए जब तक की उसे पा नहीं लें।

हर व्यक्ति के अंदर पॉज़िटिव एनर्जी भरी होती है जैसे कोल्ड्रींक की बॉटल के अंदर कोल्डद्रिंक भरी होती है मगर आप जब तक ढक्कन खॉलोगे नही तब तक वो बहार नही आ पाती। इसी तरह जब तक आप अपने अंदर की एनर्जी को बाहर नही आने दोगे तब तक सफल नही हो सकते ह्मे।

कुछ भी करने से पहले यही डर लगता है की लोग क्या कहेंगे या हम सफल होंगे या नही अगर व्यक्ति सफल और असफल होने का डर मन से निकाल दे तो उससे आगे बढ़ने से कोई रोक नही सकता। Failure के बिना Success की कहानी अधूरी होती है किसी भी महान व्यक्ति की success journey को देखलो बिना failure कोई भी आगे नही बढ़ा है। इसीलिए कहा जाता है कि

“failure is not different from success, failure is a part of success journey”

इसीलिए बिना किसी परिणाम की परवाह किए हमे अपना कार्य करते रहने चाहिए और अपने लक्ष्य को दृढ़ रखान चाहिए। अंतः सफलता प्राप्त होके ही रहेगी| इसी के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूँ इन शब्दों के साथ

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों

Saturday, January 23, 2021

एक नई कहानी नए साल में

  एक बच्चा अपनी माँ के साथ एक दुकान पर शॉपिंग करने गया तो दुकानदार ने उसकी मासूमियत देखकर उसको सारी टॉफियों के डिब्बे खोलकर कहा-: "लो बेटा टॉफियाँ ले लो...!!!"

 

पर उस बच्चे ने भी बड़े प्यार से उन्हें मना कर दिया. उसके बावजूद उस दुकानदार ने और उसकी माँ ने भी उसे बहुत कहा पर वो मना करता रहा. हारकर उस दुकानदार ने खुद अपने हाथ से टॉफियाँ निकाल कर उसको दीं तो उसने ले लीं और अपनी जेब में डाल ली.

 

वापस आते हुऐ उसकी माँ ने पूछा कि "जब अंकल तुम्हारे सामने डिब्बा खोल कर टाँफी दे रहे थे , तब तुमने नही ली और जब उन्होंने अपने हाथों से दीं तो ले ली..!! ऐसा क्यों..??"

 

तब उस बच्चे ने बहुत खूबसूरत प्यारा जवाब दिया -: "माँ मेरे हाथ छोटे-छोटे हैं... अगर मैं टॉफियाँ लेता तो दो तीन टाँफियाँ ही आती जबकि अंकल के हाथ बड़े हैं इसलिये ज्यादा टॉफियाँ मिल गईं..."

 

बिल्कुल इसी तरह जब भगवान हमें देता है, तो वो अपनी मर्जी से देता है और वो हमारी सोच से परे होता है, हमें हमेशा उसकी मर्जी में खुश रहना चाहिये....!!!

 

क्या पता..??

 

वो किसी दिन हमें पूरा समंदर देना चाहता हो और हम हाथ में चम्मच लेकर खड़े हों...



Monday, September 09, 2019

आप क्या है!

दयानन्द नाम का एक बहुत बड़ा व्यापारी था और उसका इकलौता पुत्र सत्यप्रकाश जो पढ़ने से बहुत जी चुराता था और परीक्षा मे भी किसी और के भरोसे रहता और फेल हो जाता!
पर एक दिन उसके जीवन मे ऐसी घटना घटी फिर उसने संसार से कोई आशाएं न रखी और फिर पुरी तरह से एकाग्रचित्त होकर चलने लगा!
एक दिन दयानन्द का बेटा स्कूल से घर लोटा तो वो दहलीज से ठोकर खाके नीचे गिरा जैसै ही उसके माँ बाप ने देखा तो वो भागकर आये और गिरे हुये बेटे को उठाने लगे पर बेटे सत्यप्रकाश ने कहा आप रहने दिजियेगा मैं स्वयं उठ जाऊँगा!
दयानन्द- ये क्या कह रहे हो पुत्र?
सत्यप्रकाश- सत्य ही तो कह रहा हूँ पिताश्री इंसान को सहायता तभी लेनी चाहिये जब उसकी बहुत ज्यादा जरूरत हो और इंसान को ज्यादा आशाएं नही रखनी चाहिये नही तो एक दिन संसार उसे ऐसा गीराता है की वो फिर शायद कभी उठ ही न पाये!
दयानन्द- आज ये कैसी बाते कर रह हो पुत्र? बार बार पुछने पर भी पुत्र कुछ न बोला कई दिन गुजर गये फिर एक दिन दयानन्द- आखिर हमारा क्या अपराध है पुत्र, की तुम हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हो!
सत्यप्रकाश- तो सुनिये पिता श्री एक दिन मैं स्कूल से जब घर लोट रहा था तो एक वृद्ध सज्जन माथे पर फल की टोकरी लेकर फल बेच रहे थे और चलते चलते वो ठोकर लगने से गिर गये जब मैं उन्हे उठाने पहुँचा तो उन्होंने कहा बेटा रहने दो मैं उठ जाऊँगा पर मैं आपको धन्यवाद देता हूँ की आप सहायता के लिये आगे आये!
फिर उन्होने कहा पुत्र आप एक विद्यार्थी हो आपके सामने एक लक्ष्य भी है और मैं आपको सफलता का एक मंत्र देता हूँ की संसार से ज्यादा आशाएं कभी न रखना!
फिर मैंने पूछा बाबा आप ऐसा क्यों कह रहे हो और संसार से न रखुं आशाएं तो किससे रखुं?
तो उन्होने कहा मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ पुत्र की जो गलती मैंने की वो गलती आप न करना और आशाएं स्वयं से रखना अपने सद्गुरु और इष्टदेवजी से रखना किसी और से ज्यादा आशाएं रखोगे तो एक दिन आपको असफलताएं ज्यादा और सफलताएं कम मिलेगी!
मेरा एक इकलौता पुत्र जब उसका जन्म हुआ तो कुछ समय बाद मॆरी पत्नी एक एक्सीडेंट मे चल बसी और वो भी गम्भीर घायल हो गया उसके इलाज मे मैंने अपना सबकुछ लगा दिया वो पूर्ण स्वस्थ हो गया और वो स्कूल जाने लगा और मैं उससे ये आशाएं रखने लगा की एक दिन ये कामयाब इंसान बनेगा और धीरे धीरे मॆरी आशाएं बढ़ने लगी फिर एक दिन वो बहुत बड़ा आदमी बना की उसने मॆरी सारी आशाओं को एक पल मे पूरा कर दिया!
तो मैंने पूछा की वो कैसे ?
तो उन्होने कहा की वो ऐसे की जब मैं रात को सोया तो अपने घर मे पर जब उठा तो मैंने अपने आपको एक वृद्धआश्रम मे पाया और जब मैं घर पहुँचा तो वहाँ एक सज्जन पुरूष मिले उन्होने बताया की बाबा अब ये घर मेरा है आपका बेटा मुझे बेचकर चला गया! फिर मैं अपने सद्गुरु के दरबार मे गया क्षमा माँगने!
फिर मैंने कहा पर बाबा सद्गुरु से क्षमा माँगने क्यों तो उन्होने कहा पुत्र वर्षों पहले उन्होंने मुझसे कहा था की बेटा संसार से ज्यादा आशाएं न रखना नही तो अंततः निराशा ही हाथ आयेगी और फिर मैंने उन्हे प्रणाम करके अपनी आगे की यात्रा शुरू की और आज मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि आज मैं इस संसार से नही बस अपने आपसे अपने सद्गुरु से और अपने इष्टदेवजी से आशाएं रखता हूँ!
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और फिर मैं वहाँ से चला आया!
दयानन्द- माना की वो बिल्कुल सही कह रहे थे पर बेटा इसमे हमारा क्या दोष है?
सत्यप्रकाश- क्योंकि जब उन्होंने अपने पुत्र का नाम बताया तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई!
क्योंकि उन्होंने अपने पुत्र का नाम दयानन्द बताया और वो दयानन्द जी कोई और नही आप ही हो!
मित्रों एक बात हमेशा याद रखना हमेशा ऐसी आशाएं रखना जो तुम्हे लक्ष्य तक पहुँचा दे पर संसार से कभी मत रखना अपने आपसे, अपने सद्गुरु से और अपने ईष्ट से रखना क्योंकि जिसने भी संसार से आशाएं रखी अंततः वो निराश ही हुआ और जिसने नही रखी वो लक्ष्य तक पहुँचने मे सफल हुआ!
मित्रों तो सफलता का एक सुत्र ये भी है की संसार से ज्यादा आशाएं कभी मत रखना क्योंकि ये संसार जब भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की आशाओं पर खरा न उतरा तो भला हम और आप क्या है!

Thursday, October 04, 2018

बुलंद होसलों की कहानी

मुसीबते हमारी ज़िंदगी की एक सच्चाई है। कोई इस बात को समझ लेता है तो कोई पूरी ज़िंदगी इसका रोना रोता है। ज़िंदगी के हर मोड़ पर हमारा सामना मुसीबतों(problems) से होता है. इसके बिना ज़िंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती।
अक्सर हमारे सामने मुसीबते आती है तो तो हम उनके सामने पस्त हो जाते है। उस समय हमे कुछ समझ नहीं आता की क्या सही है और क्या गलत। हर व्यक्ति का परिस्थितियो को देखने का नज़रिया अलग अलग होता है। कई बार हमारी ज़िंदगी मे मुसीबतों का पहाड़ टूट पढ़ता है। उस कठिन समय मे कुछ लोग टूट जाते है तो कुछ संभाल जाते है।
मनोविज्ञान के अनुसार इंसान किसी भी problem को दो तरीको से देखता है;
1 problem पर focus करके(problem focus peoples)
2 solution पर focus करके(solution focus peoples)
Problem focus peoples अक्सर मुसीबतों मे ढेर हो जाते है। इस तरीके के इंसान किसी भी मुसीबत मे उसके हल के बजाये उस मुसीबत के बारे मे ज्यादा सोचते है। वही दूसरी ओर solution focus peoples मुसीबतों मे उसके हल के बारे मे ज्यादा सोचते है। इस तरह के इंसान मुसीबतों का डट के सामना करते है।

दोस्तो आज मै आपके साथ एक महान solution focus इंसान की कहानी शेयर करने जा रहा हु जो आपको किसी भी मुसीबत से लड़ने के लिए प्रोत्साहित (motivate) करेगी। दोस्तो आपने नेपोलियन बोनापार्ट (napoleon Bonaparte) का नाम तो सुना ही होगा। जी हा वही नापोलियन बोनापार्ट जो फ़्रांस के एक महान निडर और साहसी शासक थे जिनके जीवन मे असंभव नाम का कोई शब्द नहीं था। इतिहास में नेपोलियन को विश्व के सबसे महान और अजय सेनापतियों में से एक गिना जाता है। वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से माने जाते थे । उसके सामने कोई रुक नहीं पाता था।

नेपोलियन के बुलंद होसलों की कहानी- A MOTIVATIONAL STORY IN HINDI FOR PROBLEM SOLVING


नेपोलियन अक्सर जोखिम (risky) भरे काम किया करते थे। एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढे। सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करने असंभव था। उसकी सेना मे अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। फिर भी उसने अपनी सेना को चढ़ाई का आदेश दिया। पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोले की क्यो मरना चाहते हो। यहा जितने भी लोग आये है वो मुह की खाकर यही रहे गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापिस चले जाओ। उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हो गया और झट से हीरो का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मै जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना। उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए। ‘ जो करने या मरने ‘ और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।
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आज सचिन तेंदुलकर (sachin tendulkar) को इसलिए क्रिकेट (cricket) का भगवान कहा जाता है क्योकि उन्होने जरूरत के समय ही अपना शानदार खेल दिखाया और भारतीय टीम को मुसीबतों से उभारा। ऐसा नहीं है कि यह मुसीबते हम जैसे लोगो के सामने ही आती है, भगवान राम के सामने भी मुसीबते आयी है। विवाह के बाद, वनवास की मुसीबत। उन्होने सभी मुसीबतों का सामना आदर्श तरीके से किया। तभी वो मर्यादा पुरषोतम कहलाये जाते है। मुसीबते ही हमें आदर्श बनाती है।

अंत मे एक बात हमेशा याद रखिये;
जिंदगी में मुसीबते चाय के कप में जमी मलाई की तरह है,
और कामयाब वो लोग हैं जिन्हेप फूँक मार के मलाई को साइड कर चाय पीना आता है...

Friday, April 13, 2018

संसार हवन कुंड है........


पंडित जी पूजा करा रहे थे। लोग हाथ जोड़े बैठे थे। 
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पूजा के बाद बारी आई हवन की। पंडित जी ने सबको हवन में शामिल होने के लिए बुलाया। सबके सामने हवन सामग्री रख दी गई। 
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पंडित जी मंत्र पढ़ते और कहते, “स्वाहा।”
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जैसे ही पंडित जी स्वाहा कहते, लोग चुटकियों से हवन सामग्री लेकर अग्नि में डाल देते। 
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बाकी लोगों को अग्नि में हवन सामग्री डालने की ज़िम्मेदारी दी गई थी, और गृह मालिक को स्वाहा कहते ही अग्नि में घी डालने की ज़िम्मेदीरी सौंपी गई। 
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कई बार स्वाहा-स्वाहा हुआ। मैं भी हवन सामग्री अग्नि में डाल रहा था। 
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मैंने नोट किया कि हर व्यक्ति थोड़ी सामग्री डालता, इस आशंका में कि कहीं हवन खत्म होने से पहले ही सामग्री खत्म न हो जाए। 
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गृह मालिक भी बूंद-बूंद घी डाल रहे थे। उनके मन में भी डर था कि घी खत्म न हो जाए। 
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मंत्रोच्चार चलता रहा, स्वाहा होता रहा और पूजा पूरी हो गई। 
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मैंने देखा कि जो लोग इस आशंका में हवन सामग्री बचाए बैठे थे कि कहीं कम न पड़ जाए, उन सबके पास बहुत सी हवन सामग्री बची रह गई। 
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घी तो आधा से भी कम इस्तेमाल हुआ था। 
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हवन पूरा होने के बाद पंडित जी ने सभी लोगों से कहा कि आप लोगों के पास जितनी सामग्री बची है, उसे भी अग्नि में डाल दें। 
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गृह स्वामी से भी उन्होंने कहा कि आप इस घी को भी कुंड में डाल दें। 
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एक साथ बहुत सी हवन सामग्री अग्नि में डाल दी गई। सारा घी भी अग्नि के हवाले कर दिया गया। 
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अब पूरा घर धुंए से भर गया। वहां बैठना मुश्किल हो गया। 
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एक-एक कर सभी कमरे से बाहर निकल गए। 
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सभी कह रहे थे कि बेकार ही हवन सामग्री हमने बचाई थी। सही अनुपात में डाल दिए होते तो कमरे में धुंआ नहीं फैलता। 
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घी को भी बचाने की जगह सही अनुपात में खर्च करना चाहिए था। 
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खैर, अब जब तक सब कुछ जल नहीं जाता, कमरे में जाना संभव नहीं था। हम सभी लोग गर्मी में कमरे से बाहर खड़े रहे। 
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काफी देर तक हमें इंतज़ार करना पडा, सब कुछ स्वाहा होने के इंतज़ार में। 
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बस मेरी कहानी यहीं रुक जाती है। 
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कल मैं सोच रहा था कि उस पूजा में मौजूद हर व्यक्ति जानता था कि जितनी हवन सामग्री उसके पास है, उसे हवन कुंड में ही डालना है। 
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पर सबने उसे बचाए रखा। सबने बचाए रखा कि आख़िर में सामग्री काम आएगी। 
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ऐसा ही हम करते हैं। यही हमारी फितरत है। हम अंत के लिए बहुत कुछ बचाए रखते हैं। हम समझ ही नहीं पाते कि हर पूजा खत्म होनी होती है। 
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हम ज़िंदगी जीने की तैयारी में ढेरों चीजें जुटाते रहते हैं, पर उनका इस्तेमाल नहीं कर पाते। 
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हम कपड़े खरीद कर रखते हैं कि फलां दिन पहनेंगे। फलां दिन कभी नहीं आता। हम पैसों का संग्रह करते हैं ताकि एक दिन हमारे काम आएगा। वो एक दिन नहीं आता। 
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ज़िंदगी की पूजा खत्म हो जाती है और हवन सामग्री बची रह जाती है। 
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हम बचाने में इतने खो जाते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते कि जब सब कुछ होना हवन कुंड के हवाले है, उसे बचा कर क्या करना। बाद में तो वो सिर्फ धुंआ ही देगा। 
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अगर ज़िंदगी की हवन सामग्री का इस्तेमाल हम पूजा के समय सही अनुपातम में करते चले जाएं, तो न धुंआ होगी, न गर्मी। न आंखें जलेंगी, न मन। 
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ध्यान रहे, संसार हवन कुंड है और जीवन पूजा। एक दिन सब कुछ हवन कुंड में समाहित होना है। 
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अच्छी पूजा वही होती है, जिसमें हवन सामग्री का सही अनुपात में इस्तेमाल हो जाता है। 
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अच्छी ज़िंदगी वही होती है, जिसमें हमें संग्रह करने के लिए मेहनत न करनी पड़े। हमारी मेहनत तो बस ज़िंदगी को जीने भर जुटाने की होनी चाहिए।


छठी पुतली रविभामा ~ विक्रमादित्य की परीक्षा!

  छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे...